Saturday, October 18, 2008

A really nice poem that I came across....waqt nahin

हर खुशी है लोगों के दामन में ,
पर एक हँसी के लिए वक्त नहीं ।
दिन रात दौड़ती दुनिया में ,
जिंदगी के लिए ही वक्त नहीं ।

माँ की लोरी का एहसास तो है ,
पर माँ को माँ कहने का वक्त नहीं ।
सारे रिश्तों को तो हम मार चुके ,
अब उन्हें दफ़नाने का भी वक्त नहीं ।

सारे नाम मोबाइल में हैं ,
पर दोस्ती के लिए वक्त नहीं ।
गैरों की क्या बात करें ,
जब अपनों के लिए ही वक्त नहीं ।

आंखों में है नींद बड़ी ,
पर सोने का वक्त नहीं ।
दिल है घमों से भरा हुआ ,
पर रोने का भी वक्त नहीं ।

पैसों की दौड़ में ऐसे दौडे ,
की थकने का भी वक्त नहीं ।
पराये एहसासों की क्या कद्र करें ,
जब अपने सपनो के लिए ही वक्त नहीं ।

तू ही बता ऐ जिंदगी ,
इस जिंदगी का क्या होगा ,
की हर पल मरने वालों को ,
जीने के लिए भी वक्त नहीं ॥


Makes you think about the way our life goes about here.
How many times have I felt ...neglecting studies....neglecting friends...neglecting health...neglecting sports....neglecting parents...neglecting...life.